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________________ आउत्तो-सावधान थइने जहाथाम-पोतानी शक्तिने अ नुसारे झुंजइ-प्रवत्र्ते वीरिआयारो-वीर्याचार अणिगृहिअबलवीरिओ-नथी गोपव्यु बलवीर्य जेणे एवो . परक्कमइ जो जहुत्तमाउत्तो-शास्त्रमा कह्या प्रमाणे जे मनुष्य सावधान अथवा उद्यमवंत थयो छतां पराक्रम करे जुंजइ अ जहाथाम-तथा शक्ति प्रमाणे प्रवृत्ति करे नायव्यो वीरिआयारो-ते वीर्याचार जाणवो. भावार्थ-बळ वीर्यने गोपव्या विना तथा सावधानपणे उद्यमवंत थइने जे मनुष्य शास्त्रमा कह्या प्रमाणे पराक्रम करे अने शक्ति प्रमाणे ते ते धर्म क्रियादिकमां प्रवृत्ति करे, ते वीर्याचार कहेवाय छे. ॥ ८॥ ॥इति अतिचार गाथा १६ ॥ (पछी काउस्सग्ग पारी "लोगस्स" कही, त्रीजा आवश्यकनी मुहपत्ति पडिलेही बे " वांदणा" दइ बोलवू ) इच्छाकारेण संदिसह भगवन् देवसियं आलोएमि, जो मे देवसिओ विगेरे पाने १०५ मेंथी कहेवो पछी, ॥१७ अथ सातलाख ॥ सात लाख पृथ्वीकाय, सात लाख अप्काय, सात लाख तेउकाय, सात लाख वाउकाय, दश लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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