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हवे दर्शनाचारना आठ भेदो बतावे छेमू०-निस्संकिअनिक्कंखिअ, निधितिगिच्छा अमूढदिट्ठी। ___ उववूहथिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ ॥३॥
शब्दार्थःनिस्संकिअ-शंकारहितपणुं
नी वृद्धि निक्कंखिअ-आकांक्षारहितपगं थिरीकरणे-स्थिर करवापj निवितिगिच्छा-फल प्रत्ये वच्छल्ल-वात्सल्य अने . संदेह रहितपणुं
पभावणे-प्रभावना अमूढदिट्ठीअ-मोहरहित दृष्टि
अट्ठ-(आ) आठ आचार उववृह-गुणप्रशंसावडे, उत्साह- ( दर्शनना छे )
भावार्थ-वीतरागना वचनमा देशथी के सर्वथी शंका न करवी ते निःशंकित १, जिनमत विना अन्य अन्य मतनी इच्छा न करवी ते निष्कांक्षित २, धर्मना फळमां संदेह न करवो ते, अथवा साधु-साध्वी
ओनां शरीर, वस्त्र विगेरे मलिन देखी दुगंछा न करवी ते निर्विचिकित्सा अथवा निर्विजुमुप्सा ३, मिथ्यात्वीना अज्ञान कष्ट, मंत्र के चमत्कार देखी तेना पर मोह न पामवा ते अमूढदृष्टि ४, * समकितधारीना अल्पगुणनी पण शुद्ध मनथी प्रशंसा करी तेने धर्ममार्गमां उत्साहवाळो ते उपबंहणा पू.
* आ चार आचार आभ्यंतर छे, बाकीना चार बाह्य छे.
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