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भावार्थ-संसारना सर्व जीवोने अभयदान आपनारा छे, ज्ञानरूपी चक्षुने आपनारा छे, मोक्षमार्गने देखाडनारा छे, निराधार प्राणीओने शरण आपनारा छे, संयमरूपी जीवितव्यने देववाळाने धर्मने आपनारा छे,, धर्मना उपदेश आपनारा छे, धर्मना नायक छे, धर्मरूपी रथने चलाववामां सारथि समान छे,धर्मचक्र वडे चार गतिनो अंत करवामां चक्रवर्ती समान छे, मु०-दीवो ताणं सरणगइपइट्ठा, अप्पडिहयवरनाणदंसण धराणं,
वियदृछउमाणं ॥७॥ जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहयाणं, मुत्ताणं मोअगाणं ॥८॥
शब्दार्थ:दीवो-द्वीप समान
छउमाणं-छद्यस्थावस्थामांथी ताणं-रक्षण करनार सरण-शरणरूप
जिणाणं-रागादि शत्रुओने जीतगइ-गतिरूप
नारने पइट्ठा-आकाररूप
जावयाणं-जीताडनारने अप्पडिहय-कोइथी हणाय नहि । तिन्नाणं-तरनारने तेवा
तारयाणं-तारनारने वर-श्रेष्ठ-उत्तम
बुद्धाणं-तत्व जाणनारने नाण-केवळ ज्ञान
बोहयाणं-बोध आपनारने दसण -केवळ दर्शन
मुत्ताणं-पोते कर्मथी मूकायेलाने धराणं-धारण करनारने मोअगाणं--बीजाने कर्मथी मूवियट्ट-निवर्त्या छे
". कावनारने
तेमने
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