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जीव- अजीव
बालक था।
जितेन्द्र बड़ा बुद्धिमान् और विनयी गुरुजी उस पर बड़े प्रसन्न थे। वे एक दिन बोले— 'बेटा जितेन्द्र ! बताओ, जीव किसे कहते
हैं ?'
जितेन्द्र ने विनयपूर्वक उत्तर जीव किसे कहते हैं ? यह तो आप ही ही बताएँ !
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दिया— 'गुरुजी मुझे पता नहीं,
'अच्छा हम आज तुम्हें जीव किसे कहते हैं ? और जीव से जीव से विपरीत अजीव किसे कहते हैं ? यह अच्छी तरह समझायेंगे। परन्तु पहले जरा अपनी दवात और कलम को तो आवाज दो कि वे यहाँ आएँ, कुछ थोड़ा-सा लिखना है।'
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