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________________ दूसरों के दुःख को को छोड़ने के लिए सच्ची दया है। ८७ ) करने के लिए अपने सुख नाम Jain Education International दूर तैयार हो जाना, इसी का फिर जाता दया धर्म का का मूल है। मूल जड़ को कहते हैं। अगर वृक्ष की जड़ सूख जाए तो वह हरा-भरा नहीं रह सकता, उसी समय सूख है। इसी इसी प्रकार दया का नाश होते ही ही धर्म का वृक्ष भी हरा-भरा नहीं रह सकता, उसी समय सूख जाता है। जो साधक सच्चा दयालु होगा, उसमें दूसरे सद्गुण अपने आप आ जायेंगे। दया के होने पर ही आदमी सच बोल सकता है, ईमानदार रह सकता है, अच्छा चाल-चलन बना सकता है, है, सन्तोषी सन्तोषी रह सकता है, और दान देने वाला उदार हृदय का हो सकता है। दया बड़े से बड़ा धर्म है। दया के बराबर दूसरा कोई भी धर्म नहीं है। जैन धर्म में तो सब जीवों पर दया भाव रखना, को ही मुख्य धर्म माना गया है, पर इसे दूसरे धर्म वाले भी मानते हैं। परन्तु विचार और आचरण जैनों की दया, सारी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001360
Book TitleJain Bal Shiksha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size2 MB
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