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मेघरथ की दयालु आत्मा ही आगे चलकर जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथ जी के रूप में अवतरित हुई।
तुमने देखा, दया का फल कितना सुन्दर मिलता है ! दया के प्रभाव से तीर्थंकर जैसा महान् पद मिलता है, जिनके चरणों में स्वर्ग के इन्द्र भी मस्तक झुकाते हैं।
अभ्यास
१. राजा मेघरथ कैसा राजा था ? . २. उसके पास दो देवता क्यों आये ? ३. राजा और बहेलिए में क्या बातें हुईं ? ४. मेघस्थ कौन से तीर्थकर हुए ? ५. इस कहानी से तुम्हें क्या शिक्षा मिलती है?
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