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( ३८ ) राजा ने झटपट अपनी तराजू मंगा ली। तराजू के एक पलड़े में कबूतर को बिठाया और दूसरे पलड़े में अपना मांस काट-काट कर रखने लगा। पलड़ा मांस से भर गया, परन्तु कबूतर के बराबर न हुआ। देवता की माया जो ठहरी। राजा मेघरथ
भी पीछे हटने वाले नहीं थे। अन्त में बड़े आनन्द ___ के साथ स्वयं ही हँसते हुए तराजू के पलड़े में ___ बैठ गए, और कहा कि-'लो भाई अब तो कबूतर
के बराबर हुआ।'
राजा का तराजू में बैठना था कि आकाश में देव-दुन्दुभि बज उठी। फूलों की वर्षा होने लगी। 'जय-जय की ध्वनि से वायुमण्डल दूर-दूर तक गूंजने लगा। दोनों देवताओं ने प्रसन्न भाव से राजा के चरणों में झुक कर वन्दना की और क्षमा माँगी। राजा का शरीर क्षण भर में फिर पहले जैसा स्वस्थ हो गया।
- बच्चो, जैन इतिहास में राजा मेघरथ का बहुत गुणगान किया गया है। दया-धर्म के लिए राजा मेघरथ का उदाहरण अलौकिक है। तुम जानते हो, भगवान शान्तिनाथ कौन से तीर्थंकर थे ? राजा
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