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( ३६ ) प्रकट की। परन्तु दो देवताओं को वह बात कुछ रुची नहीं; उन्होंने परीक्षा की ठानी।
देवों में एक देव कबूतर बना, और दूसरा बहेलिया। कबूतर उड़ता हुआ राजा के पास पहुँचा। वह भय के मारे थर-थर काँप रहा था। राजा ने बड़े प्रेमपूर्वक दयाभाव से कबूतर की पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा- "अरे भाई, डरता क्यों है ? अब तुझे कोई मार नहीं सकेगा।"
इतने में पीछे-पीछे बहेलिया भी आ पहुँचा। वह बोला- "महाराज यह मेरा कबूतर है। मैंने खाने के लिए इसे पकड़ा था। देखो, यह मेरा बाज भी भूखा है। मेरा कबूतर मुझे मिलना चाहिए।"
राजा ने कहा- "भाई, अब तो यह मेरी शरण में आ गया है। मैं तुम्हें मारने के लिए भला कैसे दे सकता हूँ ! हाँ, इसके बदले में जो कहो, दिला दूं. बताओ, क्या चाहिए ?"
बहेलिए. ने कहा- “महाराज, यह अन्याय है। मेरी चीज मुझे लौटा दीजिए। अगर नही लौटा
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