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________________ शिक्षा का प्रारंभ * शिक्षा माता के चरणों से ही प्रारम्भ होती है, और शैशव की बातों में शिशुओं से कहा प्रत्येक शब्द उनके चरित्र का निर्माण करता है। - बेल ★ बहुधा देखा गता है कि वास्तविक शिक्षा तभी प्रारंभ होती है जब व्यक्ति विद्यालय या महाविद्यालय से निकलते हैं। - सन्त निहालसिंह सीख बाल - जगत् को जीवन निर्माण में व्यबहारिकता को भी अत्यन्त आवश्यकता रहती है। कैसे चलें, रहें आदि छोटो - छोटी बातों का ध्यान रखना भी परम आवश्यक है। बचपन में अंकुरित सुसंस्कार जीवन भर साथ निभाते हैं। पढ़िए, गुरुदेव श्री की लेखनी से आबद्ध ये व्यवहार-पूत्र' ! बड़ों को सदा आप कहकर बोलो, तुम या तू मत कहो । तू कहना तो बहुत ही भद्दा है । 'आप' बड़ों के लिए आदर-भाव का सूचक है। जब किसी से बोलना हो तो बड़े आदर के साथ पिताजी, चाचाजी, भाईजी तथा अम्माजी, ताईजी, बहनजी, आदि यथायोग्य विशेषण लगाकर बोलना चाहिए। अपने से बड़ों के साथ चलना हो तो उनसे एक दो कदम पीछे रहो, वे पीछे हों तो मार्ग देकर, उनको आगे हो जाने दो। दरवाजे के अन्दर जाना हो तो पहले उनको जाने दो। दरवाजा वन्द हो तो आगे बढ़ कर उसे खोल दो । [ ४८ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001359
Book TitleJain Bal Shiksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1986
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size2 MB
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