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बनाकर आया और द्वारकापुरी के एक आम रास्ते के किनारे पड़ गया ।
वह कुत्ता भूख के मारे बेचैन था । देह में सिर्फ हड्डियाँ ही दिखाई दे रही थी । दांत बाहर को निकल आए थे, सारी देह सड़ रही थी । वह दर्द के मारे बुरी तरह चिल्ला रहा था । सारी देह में खून और मवाद चू रहा था ओर इतनी भयंकर दुर्गन्ध फैल रही थी, कि लोगों ने उस रास्ते से आना-जाना तक बन्द कर दिया । तभी उधर से श्रीकृष्ण निकले । उन्होंने तड़पते हुए कुत्ते की आवाज सुनी । उनके मन में फौरन दया उपजी और दुर्गन्ध की परवाह न करके वे इस कुत्ते के पास पहुंचे उन्होंने बड़े प्यार से उसे पूचकारा और अपने कीमती दुपट्टे को फाड़ कर उससे उसका मवाद पोंछने लगे । इसी तरह वे विविध प्रकार से उस कुत्ते की सेवा बड़ी देर तक करते रहे !
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