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नरक कहाँ है? जहाँ क्रोध, द्वेष, वैर, घृणा और ईर्ष्या की वैतरणी बहती हो। स्वर्ग कहाँ है?
जहाँ प्रेम, स्नेह, सहानुभूति, समवेदना और सद्भावना की अमृतमयी-गंगा बहती हो !
हजारों वर्षों से असत्य के भूसे ने सत्य के शुद्ध अन्न को ढक रखा है। भूसे को हटाकर ही अन्न खाया जाता है ! असत्य को हटाकर ही सत्य को परखा जाता है !
भारत का नागरिक, तभी भारत को स्वर्ग-भूमि बना सकेगा, जब कि वह यह प्रण करेगा कि वह जिस दिन कमाएगा, उसी दिन खाएगा। और जब खाएगा, तब किसी को खिलाकर ही खाएगा।
जीवन की यथार्थता से दूर हटकर मात्र कल्पना के स्वप्निल संसार में विचरण करना, दार्शनिकता नहीं है।
दार्शनिकता वह है जिसके सक्ष्म एवं विराट चिन्तन में जीवन की यथार्थता का स्पन्दन हो।
जीवन और जगत के मूलभूत प्रश्नों का वास्तविक समाधान हो।
प्रतिहिंसा की प्रेरणा के मूल में क्रोध है। वह पतन का मार्ग है। जो तुम्हें ऊँचा और महान बनाती है, वह है उपेक्षा !
प्रतिहिंसा की भावना का जन्म कायरता से होता है।
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अमर डायरी
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