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पूरी दुकान देख लेने के बाद मित्र ने सुकरात से पूछा - " कहो ! कैसी
लगी ? "
।”
सुकरात ने कहा- “ यह दुकान देख कर मुझे बहुत ही आनन्द हुआ मित्र ने फिर पूछा - "कौन-कौन सी चीजें खास तौर से पसंद पड़ी ?" “इनमें से किसी एक चीज की भी मुझे आवश्यकता नहीं है । "
“ यह कैसे हो सकता है ? जब अच्छी चीज देख कर खुशी हुई है तो उसे लेना भी चाहिए।"
सुकरात ने उत्तर दिया- “ समझो, हम किसी दवा की दुकान पर गए हों, वहाँ बढ़िया से बढ़िया दवा होती है; किन्तु अपने को इनमें से किसी भी दवा की जरूरत नहीं है, यह जान कर हमें आनन्द होता है या नहीं ? इसी प्रकार इस दुकान में से मुझे किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है - इस विचार से मुझे उतना ही आनन्द हुआ है ।"
आवश्यकता को एक बीमारी समझकर वस्तु को दवा के रूप में उपयोग करना ही जीवन में शान्ति का महान सूत्र है ।
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आज के दिन प्रतिज्ञा करो कि “हमारे देश में जो रूखा सूखा, पाव या आधा पाव मिलेगा वही खाएँगे, और जो हमारे देश में बनेगा उसी का उपयोग करेंगे।”
यदि बाहर से मँगाए जाने वाले अन्न, वस्त्र के बिना हमें भूखा नंगा रहना पड़े, तो वही हमारी शान होगी। यदि भूख के कारण मरना भी पड़े तो मरेंगे । किन्तु विदेशों से भीख माँग कर लिया हुआ अन्न खाकर, परमुखापेक्षी बन कर जीना हमें कतई मंजूर नहीं होगा।"
तुम कैसे स्वतन्त्र हो, जो दूसरों की रोटी पर जीते हो ? आज अपने श्रम और संयम से स्वतन्त्रता की रक्षा करने का संकल्प करो ।
अमर डायरी
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