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________________ समत्व-योगी, उपाध्याय, अमर मुनि जी महाराज समता साधना का प्राण है, जीवन की ज्योति है। जिस जीवन में समता नहीं है, समभाव नहीं है, उसमें साधना की ज्योति ज्येतित नहीं हो सकती। समभाव की साधना के बिना साधक अपने साध्य को सिद्ध नहीं कर सकता। साध्य सिद्धि के लिए सबसे पहले शर्त यह है कि साधक अपने मन पर जमी हुई विषमता की कालिख को धो ले । अपने और पराए के भेद की दीवार को गिरा दे । सम्मान और अपमान में सदा एक रूप बना रहे । श्रद्धेय कवि श्री जी एक साधक हैं। समता उनके जीवन का मल-मन्त्र हैं। वे प्रत्येक व्यक्ति का सम्मान करते हैं। उनके जीवन में अपने-पराए का कोई भेद नहीं है, हरिजन-परिजन का कोई झगड़ा नहीं है। मानवता के नाते मानव सब एक हैं। अस्तु किसी-जाति विशेष में जन्म लेने के कारण किसी मानव का अनादर करना, उससे घृणा करना, अपना ही अनादर करना है।। कवि श्री जी की समत्व-साधना महत्वपूर्ण है। विषमता की चिनगारियाँ उनको अपने पथ से विचलित नहीं कर सकतीं। उनके जीवन में एक-दो नहीं, अनेकों ऐसे प्रसंग आए हैं, कि गालियों की बौछारें होती रहीं और यह मस्त साधक शान्त-भाव से अपने पथ पर बढ़ता ही रहा । आलोचनाओं एवं अपमानों के कड़वे यूंट पीने में कवि जी को सम्मान की सुधा से भी अधिक आनन्द आता है। उनका वह वज्र आघोष रहा है, कि क्रान्ति पथ के पथिक को सम्मान नहीं सदा अपमान ही मिला है और मान एवं अपमान से ऊपर उठकर सोचने वाला साधक ही अपने साध्य को सिद्ध कर सकता है। -मन्त्री सन्मति ज्ञान पीठं, आगरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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