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आज का मनुष्य कर्तव्य और ईमानदारी को दूसरे के भरोसे पर छोड़कर स्वयं उससे बच निकलता है, यह सोचकर कि सभी तो ठीक है, मेरे एक से क्या होने जाने वाला है ?
“व्यक्ति में समाज की संपूर्णता निहित है । व्यक्ति टूटा तो समाज टूटा ” - यह समझकर अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करो ।
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देखो, ये मलिन वस्त्र हैं। धोबी के हाथों पत्थर पर पछाड़ खा रहे हैं ? यह मलिन मन है, विषयों से पछाड़ खाकर कष्ट पा रहा है
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शुद्ध वस्त्र को पिटने का भय नहीं। स्वच्छ मन को कोई कष्ट नहीं ।
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खाली घड़ा जल पर तैरता है, भरा डूब जाता है ।
मन के घड़े में अहंकार का जल भरा कि वह डूब गया, संसार सागर में ।
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जिस बर्तन में छाछ रखी है, उसमें दूध भरने से पहले उसे अच्छी तरह साफ कर डालो ।
विकल्पों की छाछ में ज्ञान का दूध टिक नहीं सकता ।
गाली देने वाले के अन्तर में, पहले गाली प्रवेश करती है, फिर जीभ पर आती है और इसके बाद मुख द्वारा बाहर निकलती है ।
मन, वचन और कर्म तीनों दूषित होने से ही गाली दी जाती है।
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अपने गल्ले या तिजोरी में कोई भी आदमी सड़क या गली पर के गन्दे चिथड़े उठाकर नहीं भरता !
तो फिर अपने मन और मस्तिष्क में दुनियाँ भर के गन्दे विचारों को क्यों जमा कर रहे हो ?
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अमर डायरी
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