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________________ संपत्ति का अर्थ क्या है, जानते हो? संस्कृत व्याकरण के अनुसार उसकी व्याख्या यों है “सम्यक् प्रतिपत्ति: संपत्ति:" जो सही तरीकों से प्राप्त की जाती है, वह संपत्ति है। जिस अर्थार्जन में गलत, अन्याययुक्त और विकृत तरीके अपनाये जाते हों, उसे तो 'संपत्ति' नहीं, किंतु 'विपत्ति' कहना चाहिए। संपत्ति समझदार मनुष्य की सेविका है। परन्तु मूर्ख के लिए वह जालिम है । समझदार उसका उपयोग करता है, जबकि मूर्ख स्वयं उसके उपयोग में आता रहता है। नादान से प्रशंसा पाने की अपेक्षा समझदार से निन्दा पाना कहीं अधिक ठीक है। नादान की प्रशंसा गुमराह कर देती है, जबकि समझदार की निन्दा तुम्हें मार्ग दिखाएगी। जिसे तू अपना मित्र बनाना चाहता है, उसे अपने उपकारों से न बाँध ! उपकारों में दबी हुई मित्रता, कभी अपना सच्चा रूप प्रकट नहीं कर सकती। अभिमान तर्क के मार्ग में एक बला है। भूलें उसकी साया में पलती रहती हैं। अज्ञान उसका सच्चा मित्र है। * जो आवश्यकता से पहले ही रोता है, उसे आवश्यकता से अधिक रोना पड़ता है। अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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