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यदि प्रारम्भ से ही सतर्कता रखी जाए, तो चार उपायों से इनका निराकरण किया जा सकता है : कठोर संयम से, धर्म आचरण से, निष्काम भाव से, और ईश्वर के प्रति श्रद्धा (आत्मविश्वास) से।
उद्योग, प्रयोग और योग–यही साधक के जीवन का संक्षिप्त स्वरूप है।
हर किसी से हल ढूँढ़ने की अपेक्षा, हर कोई अपना-अपना हल खुद ढूँढले तो अच्छा है, इसमें बुद्धि का विकास भी है, और समस्या का समाधान भी।
'जिन' कोई व्यक्ति वाचक संज्ञा नहीं है। यह तो एक पद है, जिसे विश्व का कोई भी व्यक्ति प्राप्त कर सकता है। __जो मन के रागद्वेष रूप बन्धनों से, स्वयं मुक्त हो सकता है, और दूसरों को मुक्त होने की प्रेरणा दे सकता है, मुक्ति का सीधा मार्ग बता सकता है, वह आत्मा 'जिन' हो सकती है।
जो व्यक्ति छोटे-छोटे नगण्य प्रलोभनों के समक्ष अपने शुभ संकल्पों की बलि चढ़ा देता है, अपने निश्चयों की हत्या कर डालता है, समझ लो वह जीवन में कभी कोई महत्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकता।
यदि किसी महत्वपूर्ण ध्येय की पूर्ति के लिए तुम्हारी मृत्यु आवश्यक है, तो, मृत्यु को खेल समझकर आगे बढ़ जाओ ! तुम हँसो ! खूब हँसो ! मुख मण्डल पर मुस्कुराहट की वह दिव्य ज्योति बिखेर दो कि मृत्यु स्वयं लज्जित हो उठे।
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अमर डायरी
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