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________________ तुम्हें मैं एक ऐसे युवक की बात कह रहा है, जो एक बार किसी अनाथ विधवाश्रम में सेवा के लिए प्रार्थना-पत्र लेकर गया। प्रौढ़ संचालिका ने उससे पूछा “आपका वेतन क्या होना चाहिए?" “जो भी आप दे दें, मैं तो सेवा करने के लिए आया हूँ !” . "पत्नी है?" “हाँ, मगर बीमार है, टी. बी. हो गई थी। इसलिए अपने पिता के घर पर है?" “अब उसकी हालत कैसी है?" “पता नहीं, मुझे गए हुए दो वर्ष हो गए !" संचालिका ने गंभीर होकर कहा-“हमें आपकी सेवा की उतनी जरूरत नहीं है, जितनी आपकी बीमार पत्नी को है। जो अपनी बीमार पत्नी की खबर तक नहीं ले सकता, वह इन गरीब बालाओं की स्नेहपूर्वक सेवा करेगा—इसकी आशा कैसे की जा सकती है?" तुम अपने को भक्त कह रहे हो न? तुम्हारी भक्ति का रूप क्या है ? क्या उसमें संतों के प्रति श्रद्धा है ? प्रभु के प्रति समर्पण है ? गुणी के प्रति आदर है? दरिद्र के प्रति सेवा भाव है ? मन्दिर या धर्म स्थान की ओर आँख मत उठाओ ! अपने अन्दर में देखो तुम्हारे में भक्ति का कौन-सा स्वरूप प्रकट हो रहा है-श्रद्धा, समर्पण, गुणानुराग या सेवा? गर्व क्या है? अपनी शक्तियों को वास्तविक से अधिक आँकना ! अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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