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चिड़िया-संसारी प्राणी है, उसने यह घोंसला (संसार) बनाया है। इसमें अपना मोह और स्नेह जोड़ा है। जब तक वह इस घोंसले में बैठा है एक सीमित परिधि में, और क्षणिक भोगों में अपने अनन्त रूप को भुलाए बैठा है।
सत्य का यह बाह्य रूप घोंसले तक ही सीमित है।
वस्तुत: सत्य तो अनन्त है । जब संसारी प्राणी (चिड़िया) काल लब्धि रूपी प्रभात वेला को पाता है, तो वह अनन्त सत्य की खोज में लम्बी उड़ान भरता है।
मन ही तन का मूल है । यही जगत का निर्माता है।
तुम्हारे ये सूक्ष्म शब्द भी शक्ति के महान् केन्द्र हैं। एक गाली देकर देखो कि क्या हाल होता है ? किसी की प्रशंसा में दो शब्दों का उच्चारण करके भी देखो कितना आदर और स्नेह मिलता है ?
सुन्दर संकल्प करो। सुन्दर वचन बोलो। जैसे तुम्हारे विचार और वचन होंगे, जीवन वैसा ही बनेगा।
क्षुद्र विचारों के लिए मन का द्वार बन्द कर, उसे महान् विचारों के लिए खोलो। जैसा संकल्प वैसा संसार !
यदि घास फूस तेरा बिछौना है, तो बेखटके सो जा। किन्तु यदि गुलाब की सेज पर लेटता है, तो होशियार रह, वहाँ काँटे भी हैं।
. ऐ संसार के धन-दुर्मदान्धो ! धन संग्रह की दौड़ लगाने से पहले अपने अन्त:करण से इस प्रश्न का उत्तर पूछो कि रावण की सोने की लंका कहाँ है ! महमूद गजनवी की दौलत कहाँ गड़ी हुई है? महान् सिकन्दर की माया कहाँ सिमट गई? और वह 'कारूँ' का खजाना, जिसकी चाबियाँ ही कभी चालीस ऊँटों पर लदती थीं; कहाँ लद गया? अमर डायरी
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