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लड़के के पिता ने उनके जुड़े हुए हाथों को अपनी हथेलियों में आबद्ध करके स्नेहसिक्त शब्दों में कहा- “जी, आप नहीं, मैं लड़की वाला हूँ। देखिए, लड़की मैंने ली, और लड़का आपने । "
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हुमायूँ एक धर्म प्रेमी मुसलमान बादशाह था । उसके एक अन्तरंग सेवक जौहर ने हुमायूँ के संस्मरण फारसी में लिखे हैं । उनका अंग्रेजी अनुवाद मेजर चार्ल्स स्टुअर्ट ने 1904 में प्रकाशित किया। जौहर ने लिखा है कि एक बार हुमायूँ ईरान जा रहे थे । दिन भर चलने के बाद शाम को पड़ाव डाला तो खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा था। खोज करने पर पता चला कि पास ही हुमायूँ के भाई कामरान का पड़ाव है, वहाँ से खाना मंगा लिया जाय । खाना आया, मांस था वह । खाने बैठे तो ध्यान आया कि गोमांस तो नहीं है ? पूछने पर पता चला कि गोमांस ही है । हुमायूँ ने तुरन्त अपना हाथ खींच लिया; और कहा – “गोमांस तो हमारे पिता की कब्र को झाड़ने बुहारने वाले तक के लिए अनुचित है ।" हुमायूँ ने वह रात एक गिलास शर्बत पी कर काटी !
हुमायूँ की इस दृढ़ निष्ठा और मनोबल से हमारे शासक वर्ग प्रेरणा ले सकते हैं ।
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प्यासा मनुष्य पानी की खोज में तपी हुई बालू पर भी भटकता है । ठीक यही दशा, ज्ञान-पिपासु आत्मा की भी है ।
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बुद्धिमान चतुर मनुष्य के होंठ राज-सभा के द्वार की तरह हैं; वे खुले नहीं कि अपार ऐश्वर्य मुस्कुराता सामने आया !
विवेकहीन मूर्ख मनुष्य का मुख साँप की बांबी के समान है, उसमें अंगुली डाली नहीं कि, दुर्वचनों का काला नाग फुंकार उठा !
अमर डायरी
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