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________________ एक बार एक संत से पूछा गया- “यदि तुम्हें कोई कष्ट दे, तो क्या करोगे? संत ने जवाब दिया-"क्षमा करूँगा।" फिर पूछा गया-“यदि वह तुम्हारे साथ दुष्टता का व्यवहार करे, तो तुम क्या करोगे?" संत की ओर से उत्तर मिला--"फिर क्षमा करूँगा, फिर क्षमा करूँगा। अन्त तक क्षमा ही करता रहूँगा, आखिर क्रोध और द्वेष क्षमा के समक्ष कब तक युद्ध-रत रहेंगे।" दार्शनिक का धैर्य एक दार्शनिक से किसी ने पूछा- “आपका विचार हमने नहीं समझा, तो आप क्या करेंगे?" दार्शनिक ने शान्त भाव से कहा- "मैं आपको प्रेम से समझाऊँगा।" जिज्ञासु ने कहा-“यदि आपके बार-बार समझाने पर भी हम नहीं समझे, तो आप क्या करेंगे?” दार्शनिक ने एक मधुर मुस्कान के साथ कहा-“मैं आपको तब तक समझाता ही रहूँगा, जब तक आप मेरी बात को समझ न जाएँ । क्योंकि मुझे विश्वास है, कि प्रकाश के सामने अंधकार टिक नहीं सकता।" आत्म-विश्वास एक योगी से किसी ने पूछा-“संसार में बड़ा कौन है ?" योगी ने मुस्कराकर कहा-“एक मैं, और दूसरा तू । पर तेरे बारे में मुझे फिर भी सन्देह है और अपने बारे में मुझे पक्का निश्चय।” अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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