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________________ प्रतिकूलता का ये द्वन्द्व सिर्फ एक व्यक्ति के लिए ही नहीं किन्तु जगत के प्रत्येक देहधारी के समक्ष है । जो बात एक के लिए अनुकूल होती है वही अन्य के लिए प्रतिकूल बन जाती है । इसका उत्तरदायित्व हमारी भावनाओं पर है। दोनों ही परिस्थितियों में भावनाओं को विकृत होने से बचाना-समता की साधना है। बड़ा भाई या छोटा भाई? एक प्रश्न है कि बड़ा भाई बनना अच्छा, या छोटा भाई ? उत्तर यह है कि एक बात-भाई बनना अच्छा है, उसमें बड़पन या छुटपन की भावना नहीं आनी चाहिए। ___ दूसरी बात-यदि अवस्था या पद की दृष्टि से छोटे-बड़े का भेद करना पड़े तो सिर्फ काल्पनिक होना चाहिए, वह भेद-रेखा सिर्फ मिट्टी की रेखा के समान होनी चाहिए, पत्थर की दरार के समान नहीं । अब यदि बड़ा बनना हो तो उसके सामने राम का आदर्श हो । राम ने लक्ष्मण और अपने बीच कभी भी छोटे-बड़े की भेद-रेखा नहीं खींची, दोनों के हृदय समान थे। समानीव आकूति: समापनो हृदयानि व यदि छोटा भाई बनना हो तो बलभद्र (बलराम) और श्रीकृष्ण का उदाहरण समक्ष है। श्रीकृष्ण ने छोटे होकर भी जो किया वह महान् और अद्भुत था। दोनों ही आदर्श हमारे समक्ष मौजूद हैं। बड़े भाई के भी उत्तरदायित्व बहुत बड़े हैं, और छोटे भाई के भी बहुत कर्तव्य है । जिस मार्ग पर चलना हो, उसी आदर्श को चुनकर चलें। मौन व्रत ___ एक विचार है कि 'मौन व्रत' का क्या अभिप्राय है? साधारण भाषा में कह दिया जाता है कि न बोलने का नाम 'मौन' है। किन्तु सात्त्विक दृष्टि से बात कुछ दूसरी ही है। न बोलना 'मूकता' है, 'मौन व्रत' नहीं है । मौन व्रत में एक विशेष प्रकार का संकल्प जाग्रत होना चाहिए, उसके पीछे विचार और विवेक होना चाहिए। 'मौन' किया, किन्तु उस मौन से मानसिक विकल्पों की कमी हुई या · नहीं? यदि विकल्पों की कमी हुई, और उसमें सम्यक् ज्ञान और सम्यक् विचार अमर डायरी 155 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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