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________________ कर देती है एवं कर्तव्य के प्रति सजग और सतर्क । लोकतांत्रिक दृष्टिकोण की मूल प्रकृति ही यह है कि मतभेद और विरोध के बावजूद घृणा उत्पन्न न हो, शालीनता और सहिष्णुता बनी रहे, सत्य-स्थिति का अलाप न हो, दो-चार दोषों की आलोचना में अन्य महत्त्वपूर्ण सद्गुणों का उपहास न हो। कड़वे को कड़वा कहो, कोई आपत्ति नहीं । परन्तु ऐसा न हो कि कड़वे के आवेग में कहीं मीठे को भी कड़वा ही प्रचारित किया जाए। संक्षेप में कहूँ तो सर्वोत्तम आलोचना वही है, जो आलोच्य व्यक्ति को बाहर की सतह पर परिवर्तित करने के बदले, उसको अन्दर की गहराई में से परिवर्तित करे-सत्यानुभूति के साथ, और वह भी सहज मधुरता के साथ । क्या धर्म बुद्धि-प्रभावक नहीं है? धर्म की आराधना में नारी जाति अधिक रस लेती है, इस पर प्रसन्नता भी होती है और ग्लानि भी। इसी प्रकार बालक, ग्रामीण जनता धर्म क्षेत्र में अधिक श्रद्धालु हैं, इस पर भी प्रसन्नता और ग्लानि की उभयमुखी प्रतिक्रिया होती है। ऐसा क्यों? प्रसन्नता इसलिए कि नारी, बालक और ग्रामीण धर्माराधन करते हैं-यह अपने में अच्छी बात है । ग्लानि इसलिए कि वे अशिक्षित हैं, भद्र हैं, केवल भावनाशील हैं-चिन्तक नहीं हैं, यह प्रशंसा के पीछे सूक्ष्म अवज्ञा की छाया रही धर्मगुरु कहते हैं-"बस, धर्म तो बहनों में रहा है। पुरुष तो धर्म से पराङ्मुख होते जा रहे हैं। जब तक बच्चे रहते हैं, धर्म की लगन रहती है। बड़े हुए, पढ़े-लिखे और बस नास्तिक । शहरों में क्या रखा है, धर्म का रंग तो गाँवों में देखिए।” इसका अर्थ यह है कि धर्म का बुद्धि से वैर है। यदि ऐसा ही है, ई तो यह तो स्वयं धर्म की पराजय है, हार है । क्या धर्म को बौद्धिकता से डरना चाहिए, भागना चाहिए? नहीं, बौद्धिक क्षेत्र में तो वह अधिक आदर के साथ ग्राह्य होना चाहिए। अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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