SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "नो इन्द्रिय गेज्झा अमुत्त भाव ।" इन्द्रियों से नहीं दिखाई देने वाली अमूत शक्ति है । उसी को जानना सबसे प्रमुख महत्व की बात है । यदि इसको जान लिया तो सबको जान लिया । आपको ग्रहण लगा है प्राण क्या है ? यह एक लम्बा प्रश्न है। मगर लाखों-करोड़ों भाव परायण लोग सूर्य और चन्द्र को राहु के चंगुल से मुक्त कराने के लिए हजारों वर्षों से माला फेरते रहे हैं, दान करते रहे हैं। कभी-कभी मेरे मन में प्रश्न उठता है कि करोड़ों मील की दूरी पर स्थित सूर्य और चन्द्र की मुक्ति के लिए जब मनुष्य यहाँ . पृथ्वीतल पर बैठकर दया की भावना अपने मन में जगाता है और सूर्य-चन्द्र की मुक्ति के लिए माला फेरता है तो वही मनुष्य अपनी इस आत्मा को जो सूर्य और चन्द्र से भी अधिक महान् है, जिसका समुज्ज्वल प्रकाश करोड़ों सूर्य चन्द्र से भी अधिक है और जो उसके सबसे अधिक निकट में है- मुक्त करने का प्रयत्न क्यों नहीं करता ? सम्भव है आपने कभी सोचा ही नहीं होगा कि इस आत्मा को भी ग्रहण लगा है क्या ? तो आज से समझ लीजिए। इसकी मुक्ति के लिए कुछ न कुछ प्रयत्न प्रारम्भ कर दीजिए । जैन दर्शन ने बताया है- -आत्मा को कर्म का राहु लगा है। वेदान्त कहता है - आत्मा को माया का राहु लगा है और बुद्ध ने कहा है कि आत्मा को वासना का राहु लगा है। सबका मतलब एक ही है कि आत्मा को 'राहु' लगा है और उसकी मुक्ति के लिए भी आपको प्रयत्न करना है । आत्मा पर जो कषाय, विकार है, अज्ञान और मोह है वही तो 'राहु' है जिसने उसके अनन्त प्रकाश और अमित शक्ति को छिपा रखा है । उसी राहु से आत्मा को मुक्त करना है । पेट मालगोदाम नहीं है एक विचारक ने कहा है- कुछ लोगों को भोजन खा जाता है, और कुछ लोग भोजन को खाते हैं। 140 Jain Education International For Private & Personal Use Only अमर डायरी www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy