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राजकुमार को देखा है जिसमें ९८ अक्ल हैं । राजा ने प्रसन्न होकर कहा, खैर दो ही तो कम हैं, कोई बात नहीं काम चल सकता है। किन्तु दो अक्ल कौन-सी नहीं हैं ? मन्त्री ने कहा-उस राजकुमार में एक तो अपनी अक्ल नहीं है, दूसरी, दूसरे की अक्ल मानता नहीं है। इन दो बातों को कमी है, बाकी सब ठीक है। राजा ने सिर पीट कर कहा-जिस मनुष्य में इन दो अक्ल की कमी है, वह मनुष्य किस काम का?
हाँ तो जिस पुरुष में स्वत: सन्मार्ग पर चलने की बुद्ध नहीं, और न दूसरे की प्रेरणा से चलता ही हो वह मनुष्य किसी काम का नहीं। वह जीवन को सफल नहीं बना सकता। साधना के तीन रूप
साधना-दूध, पानी, जहर __ भारत के मनीषियों ने साधना के तीन रूप बताए हैं-जो साधक साधना करता है, परन्तु उसका प्रदर्शन नहीं करता, उसकी यह साधना 'दूध' है। यदि उसमें इतनी शक्ति नहीं है कि वह साधना को अन्दर हजम कर जाए, वह साथियों व मित्रों के सामने उसे प्रकट करता है वह साधना 'दूध' से 'पानी' बन जाती है, उसमें दूध जितनी शक्ति तो नहीं रही, किन्तु फिर भी पानी सूखे गले को तो तर कर सकेगा। परन्तु जब साधक साधना से पहले ही ढोल पीटना शुरू कर देता है। जब साधना चलती है तो उसका प्रदर्शन और विज्ञापन करना शरू कर देता है, तो उसकी वह साधना न 'दूध' रही और न 'पानी', वह तो जहर बन गई। नवनीत था तो अमृत, परन्तु जब उसे काँसे के बर्तन में अधिक मथा तो वह 'जहर' बन गया। वस्तु और भावना
बाकुले : बेर : छिलके: भारतीय विचार में वस्तु का महत्व नहीं है, भावना का महत्व है। प्रेम और निष्ठापूर्वक किया गया थोड़ा-सा कार्य उस विशाल कार्य से श्रेष्ठ है जिसमें सिर्फ आडंबर और प्रदर्शन किया जाता है। हमारा काँटा हमेशा ही हृदय की ओर झुकता है, दिखावे की ओर नहीं।
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अमर डायरी
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