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आप भला, जग भला
एक पुरानी सूक्ति चली आई है
"यादृशी दृष्टि स्तादृशी सृष्टि: "
आँख पर यदि काला चश्मा चढ़ा है, तो टीनोपाल से धुले हुए सफेद कपड़े भी उसे काले दिखाई देंगे, हंस और बगले की सृष्टि भी उसके सामने काली और मटमैली होगी, क्योंकि उसकी दृष्टि पर काला आवरण जो है ।
दृष्टि यदि साफ है तो हर एक चीज को साफ और वास्तविक रूप में देख सकेंगे ।
मुझे एक कहानी याद आ रही है
गाँव का एक बूढ़ा नेता, गाँव के नौजवानों के साथ खेतों में बैठा कुछ चर्चा कर रहा था कि एक मुसाफिर उधर से निकला और पूछा- रे बुड्ढे ! यह गाँव कैसा है ?
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बुड्ढे ने उसकी अकड़न देखी, उत्तर दिया – भई, गाँव तो जैसा होता है, वैसा ही है, ईंट-पत्थर और लकड़ी बगैरह से बना हुआ है।
मुसाफिर ने कहा- यह तो दिखाई दे रहा है, मैं पूछता हूँ- गाँव के लोग कैसे हैं ?
बुड्ढे ने जरा संजीदगी से पूछा- जिस गाँव से तुम आ रहे हो, वह गाँव कैसा
है ?
मुसाफिर ने कहा- मत पूछो ! वह तो पापियों और राक्षसों का गाँव है, सब मेरे दुश्मन हैं, सब की आँखों से आग बरसती है, मैं तो बमुश्किल जान बचाकर आया हूँ, भगवान करे इस गाँव में भूकंप आए, बिजली गिरे और सारा गाँव ध्वस्त हो जाए ।
बूढ़े मुखिया ने कहा- भैया ! हमारा गाँव तो उससे भी बुरा है, जिन्दगी की खैर चाहते हो तो गाँव के बाहर से ही गुजर जाओ, गाँव में चले गए तो पता नहीं बच सकोगे भी या नहीं ।
मुसाफिर गुजर गया। साथ के नौजवानों के खून में गर्मी आ गई, यह बूढ़ा तो विद्रोही जान पड़ता है। बाहर वालों के सामने गाँव की इतनी बुराई करता है,
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अमर डायरी
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