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________________ बात पर पीछे मुड़कर देखना, अपने को खतरे में डालना है। अतीत की स्मृति भले ही रहे, परन्तु दृष्टि तो भविष्य की ओर ही केन्द्रित रहनी चाहिए। हम क्या थे, इसकी अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण यह देखना है कि अब हमें क्या बनना है ? __ समय के साथ आगे चलिए, आगे बढ़िए। और जब आगे बढ़ना है, तो आगे देखिए । यदि मनुष्य का पीछे की ओर देखना जरूरी होता, तो आँखें आगे की बजाय पीछे होतीं। भूत के पैर पीछे की ओर बचपन में भूतों की कहानियाँ बड़े चाव से सुना करता था। गाँव की बूढ़ी दादियाँ, जो अड़ोस-पड़ोस की होती, हम सब बच्चों को अधिकतर इसी तरह की कहानियाँ सुनाया करती थीं। भूतों के लक्षण बताते हए कहा जाता था—'उनके और यानी पंजे पीछे की ओर उलटे होते हैं।' आज इस बात का पुनर्मूल्यांकन करता हूँ तो लगता है कि जो लोग युग के अनुकूल निर्माण की दिशा में आगे बढ़कर नयी परम्पराएँ नहीं स्थापित करते, प्रत्युत गली-सड़ी अर्थहीन पुरानी । परम्पराओं की ओर ही चलते रहते हैं, सचमुच वे भूत ही हैं । ठीक है, उनके तन के पैर उलटे नहीं हैं, परन्तु मन के पैर तो उलटे हैं ही।। दृष्टि और भावना . जीवन-निर्माण की दिशा में दृष्टि और भावना-दोनों का ही महत्त्वपूर्ण .. योगदान है। दृष्टि के बिना भावनाएँ अन्धी और गूंगी रह जाती हैं। उनमें कर्म के लिए उबाल और उछाल तो होता है, पर उनसे मार्गदर्शन नहीं हो पाता । कर्म कैसा है, कब और क्यों कर्तव्य है ? इस पर दृष्टि ही प्रकाश डालती है । दृष्टि ही भावना को निश्चित आकार अर्पण करती है। भावना के बिना दृष्टि निर्जीव और निषाण है । भावना का उत्स होने पर ही दृष्टि गतिमान होती है, अन्यथा वह पंगु है, लूली लँगड़ी है। अमर डायरी स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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