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ही चक्कर काट जाएँ, चौका अशुद्ध नहीं होता। वैश्य और शूद्र भी तो अपनी-अपनी जातियों की चकबंदी बना रहे हैं। अपनी जाति-बिरादरी का यदि कोई उम्मीदवार.है, तो बस वोट तो उसे ही जाएँगे, भले ही उसमें कोई योग्यता न हो, किन्तु अपनी बिरादरी का है। ___ कुछ मनुष्य पंथवाद, संप्रदायवाद के तहखानों में बन्द हैं। वे धर्म और संप्रदाय के नाम पर जिहाद करते हैं, खून से खेलते हैं । संप्रदायवाद के जहर से समूची मानव जाति को दग्ध कर रहे हैं। धर्म और पंथ जो प्रेम का द्वार था, उसे भेद की दीवार बना रहे हैं। ___ इस प्रकार आज मनुष्य-मनुष्य के बीच अनेक दीवारें खड़ी हैं, भाई-भाई
अपने अलग घेरे में बन्द खड़ा है। समूची मानव जाति खण्डित और विभक्त हो रही है। विराट् सागर से बिछुड़ कर जैसे हर बूंद अपना अलग अस्तित्व कायम करना चाहती है। जब तक संसार के अंचल से यह व्यक्तिवाद, परिवारवाद, जातिवाद और पंथवाद की कारा नहीं टूटती, मानव जाति सुख और शान्ति से नहीं रह सकती। शिकायत है __ जब किसी पारिवारिक जीवन को देखता हूँ, तो वहाँ भी भय का वातावरण मिलता है। परिवार का हर एक सदस्य आतंकित और आशंकित है, एक-दूसरे से शिकायत करता है।
सास को बहू से शिकायत है-बहू आज्ञा का पालन नहीं करती, मुँह तोड़ जवाब देती है, और मेरे लड़के को सदा मेरे विरुद्ध बहकाती है। ___ दुख-दर्द के आँसुओं से भीगी बहू की आँखें सास के प्रति शिकायत करती हैं-उसने एक क्षण भी चैन नहीं लेने दिया, वह मुझ पर और मेरे माँ-बाप पर व्यंग्य कसती रहती है।
इसी तरह पिता पुत्र की, और पुत्र पिता की शिकायत करता है।
सामाजिक क्षेत्र में भी यह रोग बहुत व्यापक है। पुरानी पीढ़ी को नयी पौध से हमेशा शिकायत रही है-आज के पढ़े-लिखे छोकरे उन्हें आदर की दृष्टि से
अमर डायरी
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