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विचार के आलोक में
मन और मस्तिष्क का मिलन
जैन-धर्म मन और मस्तिष्क का मिलन करता है, वह ज्ञान और क्रिया को-अर्थात् विवेक और उत्साह को जीवन रथ के दो चक्र मानता है। ज्ञान से मार्ग मिलता है, क्रिया से गति । __जब तक जीवन में ज्ञान और क्रिया का सम्यक् समन्वय नहीं हो पाता, वह जीवन, वह ज्ञान, वह क्रिया भटकते रहते हैं । ज्ञान गति-शून्य और साधना विवेक शून्य रहता है।
एक दिन भारतीय साधक ने हृदय को बुद्धि से और बुद्धि को हृदय से बाँध रखा था। उसके जीवन में चमक थी, तेजस्विता थी। ज्ञान प्राणवंत था और साधना ज्योतिर्मय थी।
वर्तमान में स्थिति कुछ गड़बड़ा रही है। भावनाशील साधक क्रिया-काण्ड के प्रवाह में बह रहा है, बिना सोचे-समझे अंधेरे में भाग रहा है। मन्दिरों में पूजा की घंटियाँ बज रही हैं, स्तोत्रों की ध्वनियाँ वायु-मण्डल में गूंज रही हैं, उपाश्रय और धर्म-स्थानकों में सामायिक-संवर की भरमार है, दया-पोषध आदि की चहल-पहल है; किन्तु जब तक उसमें प्राण नहीं जग रहे हैं, चेतना विकसित नहीं हो रही है, ज्ञान और विवेक का प्रकाश नहीं जगमगा रहा है, तब तक वह तेली के बैल की तरह चक्कर लगाने के सिवाय और किसी महत्व का नहीं है।
इधर पर्युषण में दया होती है और दया वालों के लिए रातभर भट्टियाँ जलाई जाती हैं। उधर भड़भंजे की भाड़ और हलवाई की भट्टियाँ बन्द कराने का प्रयल चालू है। यदि आज चतुर्दशी है, तो बहनें घर में बुहारी देने का, कचरा साफ अमर डायरी
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