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________________ भारत की संस्कृति सदा गतिशील रही है, वह कभी भी स्थितिशील नहीं रही। यह भारतीय संस्कृति की प्रवहणशीलता ही है, जिसने अपने में अनेकानेक विभिन्न प्रकृति की संस्कृतियों को भी आत्मसात् कर लिया है, और फिर भी वह अपने मूल स्वरूप को ज्यों का त्यों बनाये हुए है । अपना मौलिक श्रेष्ठत्व उसका क्षीण नहीं हुआ है। __ भारतीय संस्कृति गंगा की वेगवती निर्मल धारा है, गंगा में जो भी नदी या नाला मिला, गंगा हो गया। अनेकों को एकत्व प्रदान करने की अद्भुत क्षमता है भारत की सांस्कृतिक परम्परा में। जीवन का आदर्श क्षुद्र नहीं; विराट होता है-तलैया नहीं, सागर होता है। तलैया के भाग्य में दिन-प्रतिदिन सूख-सूख कर क्षीण होना बदा है। तलैया कभी अमर नहीं रह सकती। सागर वस्तुत: सागर है । अनन्त अतीत से वह गर्ज रहा है, कभी थक कर सोया नहीं है, मरा नहीं है । विराट न कभी थकता है, न सोता है, और न मरता ही है । क्षुद्र नहीं; विराट बनो-तलैया नहीं, सागर बनो। विस्तार बड़े महत्व की वस्तु है। हर कोई विस्तार पाना चाहता है, प्रसार और प्रचार पाना चाहता है । परन्तु विस्तार की एक समस्या है, वह यह है कि विस्तार किस दशा में हो ! क्योंकि प्राय: वस्तुएँ दिशाहीन विस्तार प्रक्रिया में एक निश्चित सीमा के बाद अपने परिमाण और प्रकार दोनों ही गुणों को खो देती है। अत: विस्तार की दिशा का निर्धारण अवश्य होना चाहिए। जीवन संघर्ष है, संग्राम है। जीवन को कदम-कदम पर तूफानों-झंझावातों का सामना करना पड़ता है, पर्वत जैसी बाधाओं से टक्कर लेनी पड़ती है, नुकीले कांटों की राह पर चलना होता है। जीवन महकते कोमल पष्यों की सेज नहीं है। जीवन शूली का पथ है, उस पर वही आदमी चल सकता है, जिसका दिल खिलाड़ी का-सा होता है। खेल में हार-जीत होती है, किन्तु खेल सिखलाता है अमर डायरी 105 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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