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________________ घृणा द्वेष के इन बाह्य तत्वों पर प्रतिबंध लगाने मात्र से समस्या का सही समाधान नहीं हो सकता। जब तक उन सामाजिक और मानसिक व्यवस्थाओं और कारणों को नहीं मिटाया जाता, जिनके कारण मनुष्य के हृदय में भय, घृणा, द्वेष और भेद के विषैले अंकुर पैदा हो रहे हैं, समस्या का स्थायी हल नहीं हो सकेगा। मैं देखता हूँ-बच्चों के कोमल हृदय में प्रारम्भ से ही एक दूसरे वर्ग और जाति के प्रति घृणा और द्वेष के संस्कार भरे जा रहे हैं। ___ मैं हैरान हूँ—इन अमृत के सुन्दर घड़ों में यह घोर हलाहल क्यों भरा जा रहा है? क्या वे नहीं जानते कि “यह भयंकर विष सबसे पहले उन्हीं को मारेगा, जो आज उसे बच्चों के कच्चे और कोरे दिल-दिमाग में भर रहे हैं।" भारतीय संस्कृति-एक विविधरंगी वस्त्र है। वह अनेक रंग-बिरंगे धागों से बना हुआ 'देवदूष्य' है। __यदि प्रत्येक धागा वस्त्र की बनावट में अपना महत्त्व समझ ले, और उसके ताने-बाने में संलग्न रहने का गौरव अनुभव करने लग जाय, तो फिर कोई भी शक्ति संस्कृति के इस 'देवदूष्य' को विखण्डित और विभाजित नहीं कर सकती। इस जगत की तीन अवस्थाएँ हैं। जो अवस्था प्रारब्ध से प्राप्त हो गई है उसी अवस्था में रोते-बिलबिलाते पड़े रहना, निरुपाय और निरुत्साह होकर करवटें बदलते रहना “पशुत्व" है। जो अवस्था प्राप्त हो गई है, उसमें जो अशुभ और असुन्दर है उसे छोड़कर निरन्तर शुभ और सुन्दर की ओर बढ़ते रहने का प्रयत्न करना—'मनुष्यत्व' है। अमर डायरी 94 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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