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बर्षावास की विदा
आशा मानव मन का ज्योतिर्मय दीपक है । आशा का दीपक प्रज्वलित करके ही संसार में जीवित रहा जा सकता है। जिसके मानस में आशा-दोप सतत जलता रहता है, वह कभी खेद-खिन्न नहीं होता। एक कवि की वाणी में-"आशा गुलाब की सुरभित एवं सुन्दर खिली कली के समान है, जिसे देखकर द्रष्टा के मन में सौन्दर्य की भावना भर जाती है।" यह हुआ आशा का भावना पक्ष । विचार पक्ष की दृष्टि से भी मानव जीवन में आशा का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। आशा क्या है ? इस प्रश्न के समाधान में एक विद्वान ने कहा-"आशा, जीवन की परिभाषा है।" मानव जीवन की यथार्थ व्याख्या का नाम तो आशा है। कविवर दिनकर के शब्दों में
"फूलों पर आँसू के मोती,
और अश्रु में आशा । मिट्टी के जीवन की छोटी,
नपी-तुली परिभाषा ॥" आशा और निराशा दोनों मानव जीवन के अपरिहार्य पक्ष हैं । एक दिन वह था, जब आपके इस जयपुर नगर में इधर-उधर से सन्तों के पधारने के शुभ समाचार से आप सभी श्रावकों के मन आशा से भर गये थे।
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