________________
१५
वर्षावास की पूर्णाहुति
आज चातुर्मास की समाप्ति की चतुर्दशी है । सन्त जीवन का एक दिन वह था, जिस दिन वह वर्षावास करने यहाँ जयपुर में आये थे और आज वर्षावास की पूर्णाहुति का दिवस है ।
भारत की संस्कृति आरम्भ की अपेक्षा अन्त को अधिक महत्वपूर्ण समझती है । आरम्भ में मिठास हो या न हो, पर अन्त मधुर अवश्य ही होना चाहिए । अन्त का माधुर्य जीवन भर याद रहता है । यहाँ आने की अपेक्षा जाने का अधिक महत्व आंका गया है । स्वागत की अपेक्षा विदा का महत्व भारतीय संस्कृति में गौरवपूर्ण रहा है । सन्त के जीवन की सफलता स्वागत समारोह से नहीं आंकी जानी चाहिए, बल्कि उसके जीवन की यथार्थं सफलता उस समय देखी जानी चाहिए, जब वह आपके नगर से विदा हो रहा हो | आपके जीवन से दूर होने की तैयारी कर रहा हूँ । अपरिचय की स्थिति में माधुर्य रखना सरल है, जबकि परिचय के परिपाक काल में माधुर्य भावना रख सकना कठिन है ।
कहा जाता है कि एक जंगल में एक साथ दो सिंह कभी नहीं रह सकते । एक राज्य में एक साथ दो राजा प्रशासन नहीं कर सकते । सन्त जीवन के सम्बन्ध में भी आज के युग की यही धारणा बन चुकी है कि एक ही क्षेत्र में एक साथ दो परम्पराओं के सन्त नहीं रह सकते हैं। किसी
Jain Education International
( ७०
)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org