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जब तू जागे तभी सबेरा ५६ की न्याय-सभा में प्रस्तुत किया गया। शाक्य न्याय-सभा के उच्चतम न्यायाधीश ने गौतम और देवदत्त की मांगों को गम्भीरता से सुनकर कहा
-"मैं अपने हाथों से हंस को छोडूंगा। जिसकी गोद में वह स्वतः चला जाए, उसी को हंस मिलेगा।" सभाध्यक्ष के हाथों से छूटते ही वह घायल हंस अपने प्राण-रक्षक गौतम की गोद में जा बैठा । हंस ने प्रमाणित कर दिया कि मारने वाले से बचाने वाला महान होता है। दयाशील मानव के हृदय में एक आकर्षण होता है, एक जादू होता है ।
दया और करुणा अपने आप में एक बड़ी ताकत है, महान् शक्ति है । मानवता के परखने की सच्ची कसौटी है। दया और करुणा मानव की आत्मा का एक दिव्य गुण है।
जिस प्रकार बीज से अंकुर, अंकुर से वृक्ष, वृक्ष से पत्र-पुष्प और फल होते हैं, वैसे ही अभय से अहिंसा, अहिंसा से समता और समता से दया, करुणा तथा अनुकम्पा होती है। अभय बीज का दया एक मधुमय अमृत फल है, जिसके आस्वादन से आत्मा अमृतमय हो जाता हैं, अमर बन जाता है।
आज आप लोगों में से बहुत-सों ने दया व्रत ग्रहण किया है, जिसका अर्थ है आज आप संसार के प्रपंचों से दूर हट कर आत्म-साधना में संलग्न हैं। पांच आस्रवों का परित्याग करके पाँच संवरों की साधना कर रहे है। हिंसा से अहिंसा की ओर, असत्य से सत्य की ओर, स्तेय से अस्तेय की
ओर, काम से सयम की ओर और संचय से सन्तोष की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं। बासना और विकारों से निकलकर आत्म-भाव में स्थिर हो जाना और अपने स्वत्व में विश्वात्मा के दर्शन करना-वस्तुतः यही अभय और अहिंसा का विराट रूप है ।
जयपुर, लाल भवन
२६-६-५५
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