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जब तू जागे तभी सबेरा
साधक का जीवन अथ से इति तक कठोर कर्मठता का महामार्ग है । साधक अपनी साधना की सही दिशा को पकड़ कर ज्यों-ज्यों उस पर अग्रसर होता जाता है, त्यों-त्यों उसके गन्तव्य-पथ पर विकट संकटों की रुकावट और उपसर्ग एवं परीषहों की अड़चन आगे आकर अड़ कर खड़ी होती रहती है । इसी दृष्टि से साधक के साधना-पथ को कंटकाकीर्ण-पथ कहा गया है।
__ जीवन आखिर जीवन है। उसमें उलट-फेर होते ही रहते हैं, व चढ़ाव-ढलाव आते ही रहते हैं। सावधानी इस बात की रखनी है कि साधक अनुकूलता में फूले नहीं और प्रतिकूलता में भूले नहीं। महाकवि रविन्द्र ने अपनी एक कविता में कहा है -"सुख के फूल चुनने के लिए ठहर मत और संकटों के कांटों से विकल हो लौट मत ।" साधक को पवनधर्मी बनना होगा । पवन सघन कँज-पंजों में आसक्त हो बैठा नहीं रहता
और दुर्गन्ध पूर्ण स्थानों में जाकर व्याकुल नहीं रहता। जीवन की उभय स्थिति में वह निलिप्त भाव से बहता चलता है ।
___ भगवान् महावीर की वाणी में जीवन की इस स्थिति को, जीवन की इस दिशा को, वैराग्य या विराग भाव कहा गया है। भगवान् की मर्मस्पर्शी भाषा में वैराग्य का तात्पर्यार्थ जीवन के दायित्वों को फेंक कर किसी
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