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अमर भारती
अनेक पक्षी रहते हैं । मनुष्य का यह विराट विचार, मनुष्य का यह विराट भाव ही मनुष्य को महान् बनाता है, समस्याओं के समाधान में सर्व समर्थ बनाता है । मनुष्य अपने आप में बन्द होकर अपनी समस्याओं का हल नहीं कर सकता । आज का युग तो सह अस्तित्व, सहयोग और सहकार का युग है । व्यक्ति की समस्या समाज की समस्या है, समाज की समस्या राष्ट्र की समस्या है और राष्ट्र की समस्या विश्व की समस्या है। आज व्यक्ति और समाज अपने आप में बन्द रहकर जीवित नहीं रह सकता ।
आज का तरुण कहता है, यह रूढ़िवाद मुझे पसन्द नहीं । पुराना सब ध्वस्त करने में ही जीवन का आनन्द है । पुराना जो कुछ भी है, गल-सड़ गया है, उसे निकालकर फेंक दो । नये मानव के लिए नया संसार ही बसाना होगा । वृद्ध कहता है - यह सब नासमझी है, नादानी है, बेवकूफी है । पुराना पुराना ही रहेगा और नया नया ही । आखिर पूर्वज भी तो बुद्धि रखते थे । नया और पुराना यह भी एक समस्या है। तरुण बूढ़े को पुराने ढर्रे का कहता है और वृद्ध तरुण को नास्तिक कहकर झुठलाता है । यह भी एक समस्या है |
एक सेठ ने सुन्दर बाग लगाया । हरे-भरे सघन वृक्ष, फल और फूलों की अपार शोभा । पीने को शीतल और मधुर जल आने जाने वाले यात्री वहाँ पर बैठकर सुख और शान्ति का अनुभव करते थे । एक दिन सेठ का तरुण पुत्र बाग में आया । इधर-उधर घूमने लगा, तो पैर में बबूल की शूल चुभ गई । बड़ा क्रोध आया । माली को बुलाकर रोष के स्वर में कहा "इस मनहूस बाग को उजाड़ डालो। इसमें तीखे काँटे हैं । इस स्थान पर नया बाग लगाओ, जिसमें कांटे न रहें ।" सेठ को मालूम पड़ा तो माली से कहा खबरदार इस बाग को उजाड़ा तो । क्योंकि यह मेरे बाप दादों का बाग है। और इस पर मेरा बहुत खर्चा भी हो चुका है । वर्षों का परिश्रम इसके पीछे हो चुका है। कांटे हैं तो क्या ? देखभाल कर क्यों नहीं चलते। यह क्या बात है कि असावधानी अपनी और रोष बाग पर ।
माली के सामने विकट संकट और टेढ़ी समस्या थी । दोनों के विरोधी विचार | माली चतुर था - उसने बाग में से कुछ काटा, कुछ छाँटा । बबूल के पेड़ों की जगह फल और फूलों के हरे सघन वृक्ष लगा दिये गये ।
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