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________________ भारत की विराट आत्मा ३१ तो, भारत की विराटता और विशालता का अर्थ हुआ - यहाँ के दर्शन और धर्म की विशालता । भारत का धर्म और दर्शन जो कभी यहाँ के जनजन के मन में रमा हुआ था, वह पोथियों में बन्द है, मन्दिर और मस्जिदों की दीवारों में कैद है । धर्म और दर्शन जब जन जीवन में उतरता है, तब उस देश की आत्मा विराट बनती है । शरीर की विशालता को भारत महत्त्व नहीं देता, वह देता है मन की विराटता को । शरीर की विशालता कुम्भकर्ण, कंस और दुर्योधन को पैदा करती है, जिससे संसार में हाहाकार मचता है और तूफान आता है, परन्तु मन की विराटता में से राम, कृष्ण; महावीर बुद्ध अवतार लेते हैं - जिससे ससार में सुख, शान्ति और आनन्द का प्रसार होता है । देश फलता और फूलता है । मैं आपसे कह रहा था, कि भारत के उन्नयन का कारण भारत के धर्म और दर्शन के उन्नयन में रहा हुआ है, जिस देश के निवासियों का हृदय विशाल हो, मन विराट हो, उसमें धर्म-तत्व रमा हो, दर्शन -तत्व के अमृत से जिस देश के हृदयों का अभिसिञ्चन हुआ हो, वह देश फिर विराट और विशाल क्यों न हो ? लाल भवन, जयपुर Jain Education International For Private & Personal Use Only २४-७-५५ www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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