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________________ यो वै भूमा तत्सुखम् २१ बेगाना, एक घर का और दूसरा बाहर का यह वर्गीकरण ही हमारे मन की तंगदिली का सबूत पेश करता है।" मानव के विराट एकत्व को विभक्त करने वाली इस भेद-भूमि में से ही द्वेष, घृणा और हिंसा को जन्म मिलता है । मानव का सोता हुआ दानत्व जाग उठता है, आसुरी भावना प्रबल हो जाती है। भगवान् महावीर से पूछा गया-"जीवन में पाप कर्म क्या है ? और उससे छुटकारा कैसे मिले ? इस जीवन-स्पर्शी प्रश्न के उत्तर में उस विराट सदात्मा ने, जन-जीवन के प्रवीण पारखी ने कहा "सब भूयप्प भूयस्स, सम्म भूयाइ पासओ। पिहियासव्वस्स दंतस्स, पाव कम न बन्धइ॥" सम्पूर्ण संसार की आत्माओं को अपनी आत्मा के तुल्य समझने वाला कभी पाप कर्म से लिप्त नहीं होता। जैसा दुःख और जैसा कष्ट तुझे होता है, समझले, वैसा ही सबको होता है। जीवन और जगत अपने आप में न पाप रूप हैं, न पुण्य रूप । मानव के मन की संकीर्णता और क्षुद्रता ही पाप है, और विराटता महानता ही पुण्य है । मन भला तो जग भला । मन में पाप है, तो जीवन और जगत में भी पाप है-हमारे मन की तरंगों से ही तरंगित होता है-जीवन और जगत का सम्पूर्ण संव्यवहार । राजा भोज की राज सभा में एक विद्वान आया, जो दूर देश का रहने वाला था । अपने जोवन की दरिद्रता के अभिशाप को राजा के पूण्यमय वरदान से प्रक्षालित करने के संकल्प को लेकर वह आया था । द्वारपाल ने विद्वान के आने की सूचना राजा को दी और राजा भोज ने कहा"विद्वान को अतिथि गृह में ठहरा दो।" राजा भोज विद्वानों का बड़ा आदर-सत्कार करता था और उन्हें मुक्त हाथों से दान भी किया करता था। आने वाला विद्वान विचारों को कितनी गहराई में है-यह जानने के लिए राजा ने अपने एक विश्वासपात्र विद्वान के हाथों दूध से लबालब भरा कटोरा भेजा। जब वह पात्र लेकर पहुँचा, तो विद्वान प्रसन्न मुद्रा में बैठा कुछ लिख रहा था। दूध से भरे-पूरे कटोरे को देख कर विद्वान ने उस में एक बताशा डाल दिया और कहाआप इसे वापिस राजा की सेवा में ले जाएँ। समय पाकर राजा ने विद्वान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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