SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यो वै भूमा तत्सुखम् आज के जन जीवन में पग-पग पर विकट संकट और विषम समस्याओं का तूफान व अंधड़ प्रबल वेग से चल रहा है । आज के इस अणुयुग का मानव सत्ता और महत्ता के हिमगिरि के उच्चतम शिखर पर पहुँच कर भी शान्ति, सुख और सन्तोष की सुखद साँस नहीं ले पा रहा है । आज के जीवन और जगत के क्षितिज पर अशान्ति और असन्तोष का घना कुहरा छाता चला जा रहा है जिसमें मानव-मानव को देख नहीं पा रहा है। अधिक स्पष्ट कहूँ, तो वह अपने आपको भी पूरे रूप में देख नहीं पा रहा है। देखने का प्रयत्न भी नहीं कर रहा है। आज का यह विराट विश्व सुख और शान्ति के मधुर और सुन्दर नारे लगा कर भी उस सुख और शान्ति को पकड़ क्यों नहीं पा रहा है ? आज की मानुषी-मनीषा से युग इस महाप्रश्न का समाधान माँग रहा है ? विचार-महासागर के अन्तस्तल का संस्पर्श करते चलें, तो मालूम होगा कि यह महाप्रश्न आज का ही नहीं, सनातन संसार के सदाकाल से यह अपना समाधान माँगता रहा है । हम देखते हैं कि इस जगती-तल के जीव कभी सुख के और कभी दुःख के झूले पर निरन्तर झूलते रहे हैं। मानव जीवन के गगन-तल पर सुख-दुःख के बादल स्थिर होकर नहीं बैठते । धूप-छांह की तरह उड़ते-फिरते ( १८ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy