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________________ १६२ अमर भारती लालजी महाराज ने उनके विषय में जो परिचय दिया है, उससे उनके जीवन की झांकी स्पष्ट हो जाती है। __यदि वास्तविक रूप में कहा जाए, तो मुझे कहना होगा कि एक सत्पुरुष का सच्चा परिचय उसकी जीवन-चर्या ही है। सत्पुरुष स्वतः ही अपना परिचय है । इस दृष्टिकोण से पूज्यवर श्री रघुनाथजी महाराज का परिचय उनका त्याग-वैराग्य वासित जीवन ही कहा जा सकता है । समाज सेवा और धर्म-रक्षा के निमित्त उन्होंने मरुधर-धरा में जो कार्य किया है, उसे आज भी हम और आप भूल नहीं सके हैं। आपने उनके जीवन की एक कहानी के आधार से यह पता लगा लिया होगा कि जब वे गुहस्थ थे, तभी उनके मानस-सरोवर में अमर होने की भावना हिलोरें लेने लगी थीं। उनके अन्तःकरण में अमरत्व प्राप्त करने की बलवती भावना जाग उठी थी। अमरत्व प्राप्ति की धुन में वे अपने एक साथी की सलाह से किसी देवी के मन्दिर में अपना सिर चढ़ाने को भी तैयार थे, परन्तु उसी समय उन्हें जीवन-कला का सच्चा पारखी सन्त मिला, जिनका नाम था-"श्रद्धेय भूधरदासजी महाराज ।" श्री भूधरदास जी महाराज ने रघुनाथजी महाराज के अन्तर्जीवन को परखा और उन्हें सच्ची अमरता के महामार्ग पर लगा दिया। लोहे को चिन्ता-मणि का संयोग मिला और स्वर्ण बन गया। उसने आत्मा के स्वरूप को और उसके स्वभाव सिद्ध अमरत्व धर्म को भली-भांति समझ लिया। एक बलवान गजराज को कोमल कमल-तन्तु कैसे बाँध सकते हैं। कमल तन्तुओं से कीड़े-मकोड़ों का जीवन बाँधा जा सकता है, उस जाल में उन्हें भले ही बांधा जा सके, परन्तु एक बलशाली गजेन्द्र को उस में नहीं बाँधा जा सकता? वह क्षण भर में ही उस बन्धन को तोड़ फेंकता है। पूज्यवर रघुनाथ जी ने भी संसार को मोह-ममता के कच्चे धागों को तोड़ फेंका था । संसार के सभी प्रलोभन उन्हें सारहीन लग रहे थे। उन्होंने एक परिवार को छोड़कर सम्पूर्ण समाज को ही अपना परिवार बना लिया था। 'वसुधैव कुटम्बकम्' वाले सिद्धान्त पर वे चल पड़े थे। क्रोध की आंधी, मान की चट्टानें, माया का घुमाव और लोभ का गर्त उनकी वैराग्य नदी को रोक रखने में सर्वथा असमर्थ थे । उनके मजबूत कदम त्याग-मार्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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