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सत्पुरुष स्वयं ही अपना परिचय
आज वसन्त पंचमी का मंगलमय दिवस है । वह अपना नया रंगरूप लेकर अवतरित हो रही है । चारों ओर वसन्त प्रस्फुरित हो रहा है । वृक्षों पर नये-नये पुष्प जन्म ले रहे हैं । प्रकृति का प्रांगण आनन्द और उल्लास से हरा-भरा हो रहा है । इधर-उधर सर्वत्र उमंग तथा उत्साह दृष्टिगोचर हो रहा है ।
मुझे महान हर्ष है, कि जैन समाज का विशाल प्रांगण भी बसन्त के आनन्दपूर्ण प्रमोद से शून्य नहीं रहा है । जैन समाज की विराट वाटिका में भी आज के रोज एक सौरभ-पूर्ण पुष्प खिला था, जिसकी सुगन्ध और मनमोहकता से एक दिवस सम्पूर्ण समाज चकित हो गया था । मेरा अभिप्राय उस मानव-पुष्प से है, जिसको आज हम और आप " पूज्यवर रघुनाथजी" के गौरव पूर्ण नाम से अभिहित करते हैं ।
यह ठीक है, कि मैं उस महान आत्मा की जीवन-गाथा से पूर्णरूपेण परिचित नहीं है, पर यह कहना भी वास्तविक न होगा, कि मैं उनके त्यागवैराग्य पूर्ण महान व्यक्तित्व से सर्वथा अपरिचित ही हूँ । आज से बहुत वर्षों पूर्व भी मैंने कुछ पढ़ा है और आज की सभा में मन्त्रिवर श्री मिसरी
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