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नगर-नगर में गूंजे नाद, सादड़ी सम्मेलन जिन्दाबाद
करीबन दो साल से जिसकी तैयारी हो रही है, वह साधु सम्मेलन अब निकट भविष्य में ही सादड़ी में होने जा रहा है। मारवाड़ के ऊँट की तरह हमारे सम्मेलन ने भी बहुत-सी करवटें बदली । परम सौभाग्य है कि अब वह सही और निश्चित करवट से बैठ गया है । सादड़ी में चारों तरफ से सन्त सेना अपने-अपने सेनानी के अधिनायकत्व में एकत्रित होती चली आ रही है । यह एक महान् हर्ष है कि चलता-फिरता सन्त अक्षय तृतीया से अपने भावी जीवन का एक सुमहान् विधान बनाने जा रहा है । यह विधान एक ऐसा विधान होना चाहिए, जिसमें सम्प्रदायवाद, पदविवाद, शिष्यलिप्सा और गली सड़ी परम्पराओं को दूर करके एक समाचारी और मूलतः एक श्रद्धा प्ररूपणा का भव्य सिद्धान्त स्थिर होगा ।
क्षय हो, तुम्हारे उस सम्प्रदायवाद की जिसके लोह आवरण में तुम्हारी मानवता का साँस घुटा जा रहा है। यह एक ऐसा विष-वृक्ष है, जिसके प्रभाव से तुम्हारा दिमाग, तुम्हारा दिल और तुम्हारे शरीर की रगविषाक्त हो गई है । यह एक ऐसा काला चश्मा है, जिसमें सबका काला ही रंग, एक ही विकृत रूप दिखाता है, जिसमें अच्छे और बुरे की तमीज तो बिल्कुल ही नहीं है ।
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