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________________ १७० अमर-भारतो प्रत्युत हमारी प्रत्येक प्रवृत्ति विश्व हित के लिए होनी चाहिए तथा उसका प्रकाश प्राणीमात्र को मिलना चाहिए। आज के दिन हमें यही शुभ-पाठ सीखना है। हिंसा और अहिंसा का विश्लेषण एवं उसकी विविध परिभाषाएँ किया करते हैं । किन्तु संक्षेप में हिंसा और अहिंसा का निचोड़ करना चाहें, तो यह कर सकते हैं-"जो व्यक्ति अपने ही सुख-दुःख में घुलता रहता है, अपने निजी स्वार्थों से चिपटा रहता है, वह हिंसा करता है और जो व्यक्ति 'स्व' की सीमा का अतिक्रमण कर दूसरे के सुख-दुःख में भागीदार बनता है, दूसरे के आँसुओं को पोंछकर उनके निराश एवं हताश हृदयों में आशा का मधुर संचार करता है, वह अहिंसा का पुजारी है।" आज हमारी वाणी में बल नहीं है, प्रवृत्तियाँ शिथिल हैं, चेतना सुषुप्त है। इसका मूल कारण यही है कि हम अपने आप में सीमित हो रहे हैं। तात्विक दृष्टि से यही हिंसा है, पाप है। अहिंसा के महान कलाकार विश्व-हितंकर भगवान महावीर ने अपने एक प्रवचन में विश्व को यह प्राणप्रद संदेश दिया "असंविभागी न ह तस्स मुक्खो" "जो व्यक्ति अपनी सम्पत्ति का, अपनी शक्ति का संविभाग नहीं करता-केवल अपने लिए ही उसका उपयोग करता है, वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता । चाहे ऊपर से वह कितना ही क्रियाकाण्ड करता रहे, अपने को सम्यक्त्व का अधिकारी मानता रहे । जब तक सामाजिक एवं जागतिक चेतना की ओर जीवन-धारा प्रवाहित नहीं होगो, प्राणीमात्र को आत्मवत् समझकर उसके संविभाग की मौलिक भावना जागृत नहीं होगी, तब तक मोक्ष प्राप्ति असम्भव है।" यह जैन धर्म का सार्वजनिक मूल सूत्र है। इसी तरह का प्राण संचारक उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन के घोड़ों की बागडोर संभाले हुए कृष्ण ने गीता में दिया है। आप लोगों ने भी उसका परिशीलन किया होगा। परन्तु चिन्तन एवं मनन न होने के कारण सम्भव है, वह विश्व चेतनामय उपदेश आपकी बुद्धि पर अंकित न हो सका हो । अर्जुन को सम्बोधित करते हुए कृष्ण कहते हैं __ "भुङ क्ते ते त्वचं पापा, ये पचन्त्यात्मकारणात् ।" जो व्यक्ति अपने लिए रोटी पकाता है, वह रोटी नहीं, पाप पकाता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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