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१५२ अमर भारती के साधु और श्रावकों को सम्मिलित शक्ति आगामी दीपमालिका तक अपने पीड़ित जैन बंधुओं के लिए क्या व्यवस्था कर सकती है ? इसका निर्णय तो भविष्य पर ही आधारित है। मैं आशा करता हूँ कि आप अपने तन से, मन से और धन से इस संघ-सेवा के महान कार्य में अधिक से अधिक सहयोग भावना रखेंगे। महावीर भवन देहली
१९४८
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