SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बरसो मन, सावन बन बरसो आज का यह दिवस, वर्षावास के प्रारम्भ का दिवस है। आज सांध्य-प्रतिक्रमण के पश्चात् सन्त जन चार मास के लिए या इस वर्ष चूंकि भादवे दो होने से पाँच मास के लिए आप के इस जयपुर क्षेत्र में नियतवास हो जाएँगे ! वैसे सन्त सदा चलने-फिरने वाला पक्का धुमक्कड़ होता है । परन्तु वर्षाकाल में वह नियत-वास हो जाता है या हो जाना पड़ता है। एक प्रश्न है, जो अपना समाधान माँगता है। सन्त विहार को पसन्द करता है कि स्थिर वास को! उसकी जीवन-चर्या का विधान क्या है ? उसके संयत जीवन की मर्यादा क्या है ? कब वर्षा-काल आए और स्थिर रहैं ? एक सच्चे साधक का यह सकल्प हो सकता है क्या ? नहीं, कदापि नहीं । उसका यह संकल्प, यह भावना नहीं रहती। विहार करते रहना, भ्रमण करते रहना, यही उसके मन को भाता है। ग्राम से ग्राम, नगर से नगर और देश से देश परिभ्रमण करते रहना ही सन्त के महान् जीवन का साध्य-तत्व है। शास्त्र का वचन है कि "विहार चरिया मुणीणं पसत्था ।"-विहार-चर्या मुनिजनों को सदा प्रिय होती है । शास्त्रों में विधान भी है, कि अपनी कल्प-मर्यादा के अनुसार मुनि सदा यत्र-तत्र विचरण करता रहे । चर्या उसका कल्प भी है और इसमें उसे अनेक लाभ भी हैं। व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy