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चार प्रकार के यात्री
एक अज्ञात और अपरिचित व्यक्ति जब किसी के घर पर आता है, तब उस से पूछा जाता है कि आप कौन हैं ? कहाँ से पधारे हैं ? क्या करना है ? और कहाँ जाना है ? आप कहेंगे, ये भी कोई बड़े प्रश्न हैं। आने वाला कह सकता है-"मैं क्षत्रिय हैं या वैश्य है ! उदयपूर से आया है, व्यापार करना है, जयपुर जाना है। जीवन की यह स्थिति स्पष्ट और सज्ञान है।
परन्तु, आने वाला व्यक्ति आप के चार प्रश्नों में से एक का भी जवाब न दे, तो आप उसे क्या समझेंगे ? पोगल अथवा मूक । संसार में बहुत से मनुष्य इसी प्रकार के हैं, जो अपने जीवन यात्रा के पथ पर अन्धकार में भटक रहे हैं । कहाँ से आए, कौन हैं, क्या करना है और कहाँ जाना है ? इस बारे में वे कुछ भी नहीं जान पाते । ऐसे मनुष्यों का जीवन एक दयनीय जीवन है । चल रहे हैं, पर चलने के उद्देश्य का पता नहीं। मिथ्यात्व के तमिस्र में, अज्ञान के अन्धकार में भटकते-भटकते अनन्त काल हो गया आत्मा को, पर कल्याण नहीं कर सकी। क्योंकि उसे अभी तक प्रकाश नहीं मिला है । अन्धेरे में तो भटकना ही होता है, चलना नहीं।
भगवान् बुद्ध से पूछा गया-भन्ते ! यात्री कितने प्रकार के होते हैं ? सहज वाणी में उत्तर मिला-चार प्रकार के होते हैं ।
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