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भक्त से भगवान
अभी-अभी मेरे से पूर्व प्रवक्ता आपके सामने भक्त और भगवान का वर्णन कर रहे थे । भारत का दर्शन और भारत की धर्म परम्परा, भक्त और भगवान के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहते-सुनते हैं। भक्त के जीवन का लक्ष्य क्या है ऊपर से नीचे आना या नीचे से ऊपर की ओर जाना ? दोनों दृष्टिकोणों में बड़ा अन्तर है ।
एक भक्त भक्ति में मस्त है । उसके चारों ओर अन्धकार फैला है । द्वेष की चिनगारियाँ उछल रही हैं। हिंसा का झंझावात चल रहा है । घृणा और नफरत के दावानल से वह दग्ध बना रहता है । भक्त भगवान से प्रार्थना करता है, प्रभु से विनयपूर्वक विनम्र स्वर में कहता है
" तमसो मा ज्योतिर्गमय, असतो मा सद्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ।"
भक्त कहता है - "भगवन् मुझे अज्ञान के अन्धकार में परिभ्रमण करते-करते अनन्त काल हो गया, अब मुझे प्रकाश का मार्ग बतलाओ । मुझे असत्य के विनाशक मार्ग से हटाकर सत्य के प्रकाशमय मार्ग में स्थिर करो। मुझे मृत्यु से अमरता की ओर जाने का मार्ग बताइये । क्योंकि जन्म
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