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________________ १२८ अमर-भारती था ? कथाकार यह कहता है-ज्यों ही मुनि अन्तर में जागा कि अपनी दिशा बदल ली। फिर सही दिशा पर लौट आया। दिशा बदली कि दशा भी बदल गई । नारकी होते होते बचा, इतना ही नहीं, बल्कि अमरत्व के पथ पर लग गया। अजर, अमर और शाश्वत सुख को अधिगत कर लिया। भगवान महावीर ने कहा-साधक ! तू पहले अपने आप में स्थिर हो जा । अपना एक ध्येय बना ले । एक लक्ष्य चुन ले । अपनी एक दिशा पकड़ ले। फिर सुदृढ़ संकल्प से उस ओर बढ़ा चल। इस जीवन-सूत्र को याद रख-“लक्ष्य स्थिर किए बिना, कभी यात्रा मत कर । पहले सोच, समझ और फिर चल-चलता ही चल ।" जीवन में चलने का बड़ा महत्व है, परन्तु किधर चलना है और कैसे चलना है । इसका भी तो जरा निश्चय कर लो। असत्य से हट और सत्य को ओर चल । सत्य जीवन का परम सिद्धान्त है । परम गति है। सत्य स्वर्ग का सोपान है और मुक्ति का परम साधन । सत्य जीवन का सही और सीधा रास्ता है। सत्य का मार्ग ही सन्मार्ग है । सत्य जीवन की सही दिशा है, वेखटके बढ़ा चल । सत्य के प्रकाश में किसी प्रकार का भय नहीं है। सत्य का उपासक कभी जीवन में गलत दिशा में नहीं जाता। क्योंकि सत्य का प्रकाश उसके साथ रहता है। अज्ञान के अन्धकार से निकल और ज्ञान के प्रकाश की ओर प्रगति कर । ऋषि की वाणी में-"आरोह तमसो ज्योतिः ।" अन्धकार से निकल कर प्रकाश की ओर बढ़ा चल । ज्ञान का मार्ग प्रकाश का मार्ग है । जीवन के जागरण का मार्ग है । दुराचार से दूर हो, सदाचार की ओर अग्रसर होता जा। संयम, सदाचार और मर्यादा के बिना जीवन अंक शून्य बिन्दु के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है । स्वतन्त्र होना ठीक है, पर स्वच्छन्द मत बन । जो मर्यादा का पालन करता है, वस्तुतः वह मनुष्य है । पशु जीवन में एक भी मर्यादा नहीं होती। परन्तु मनुष्य जीवन मर्यादा रहित नहीं रह सकता। संयम, सदाचार, अनुशासन और मर्यादा की ओर बढ़ना, वास्तव में मनुष्यता की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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