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________________ दिशा के बदलने से दशा बदलती है १२७ जीवन में इस का निश्चय ही नही, कि करना क्या है ? तब मन स्थिर कैसे हो? तरल लहरों की ताल पर नाचने वाली नौका के समान जो व्यक्ति इस संसार सागर में वहे चले जाते हैं, उन का जीवन भी क्या जीवन है ? गंगा गए गंगादास और यमुना गए यमुनादास । जीवन की यह स्थिति खतरनाक है । उपाध्याय यशोविजय जी अपने अध्यात्म ग्रन्थ ज्ञान-सार में कहते हैं "वत्स, किं चञ्चलस्वान्तो, भ्रान्त्वा भ्रान्त्वा विषीदसि । निधि स्वसन्निधावेव, स्थिरता दर्शयिष्यति ॥" साधक ! सुख, शान्ति और आनन्द की खोज में चंचल बना क्यों इधर-उधर भटक रहा है ? खिन्न और उदास क्यों बना है ? शान्ति, सुख और आनन्द की अक्षय निधि तेरे पास ही तो है, पगले । क्यों व्यर्थ में भटक रहा है ? हीरे की खान तेरे पास ही है "पास हीरे हीरे की खान, ___ खोजता कहाँ फिर नादान ।" - हाँ, अपने आप को स्थिर कर । चित्त को शान्त रख-"स्थिरो भव ।" वह स्थिरता ही तुझे अक्षय आनन्द दे सकेगी। अपने पास अक्षय भण्डार होने पर भी तू क्यों खेद खिन्न होता है ? प्रसन्न चन्द्र मुनि का वर्णन आप ने सुना होगा। कितना तपस्वी था? कितना त्यागी था? और कैसा था, ध्यानी तथा मौनी? उसकी ध्यान मुद्रा को देखकर राजा श्रेणिक भी कितना प्रभावित हुआ था ? मन को साधे बिना ऐसा ध्यान नहीं किया जा सकता ? यह उसे विश्वास हो गया था। अपने वाहन से उतर कर मुनि के चरणों में समभक्ति से वन्दन करता है । फिर भगवान महावीर के चरणों में आकर पूछा, तो स्थिति भिन्न थी। वह मुनि देह में स्थिर अवश्य था, किन्तु अन्तर में भटक रहा था । मुनि ने अपने जीवन कल्याण के लिए जिस दिशा का निश्चय किया था, उससे भटक कर वह बहुत दूर चला गया था। बिल्कुल उल्टी दिशा में ही । उत्थान पतन की ओर चल पड़ा था। फिर शान्ति और आनन्द कहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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