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________________ ९ दिशा के बदलने से दशा बदलती है एक सन्त से किसी जिज्ञासु सज्जन ने कहा - "महाराज, मेरी दशा कैसे सुधरे ? घर में धन से और जन से सर्व प्रकार का आनन्द है । प्रभु कृपा से किसी वस्तु की कमी नहीं। फिर भी न जाने क्यों ? जीवन में शान्ति एवं सुख के मधुर क्षणों का आनन्द नहीं मिलता । चित्त सदा भटका करता है । "योग श्चिवृत्तिनिरोधः ।" इम योग सूत्र के अनुसार अपनी चित्तवृत्तियों का निरोध करने का प्रयत्न करता है, परन्तु सफलता का पुण्य दर्शन नहीं हो पाता ? सन्त ने भक्त की करुण - कथा सुनकर कहा - "तुम अब तक क्या साधना करते रहे हो !" भक्त ने आशा और उल्लास के स्वर में कहा"साधना एक क्या, अनेक की हैं । कभी योग की, कभी वेदान्त की, कभी भक्ति की ।" किन्तु शान्ति और आनन्द किसी में नहीं मिला । चित्त की दशा जरा भी बदली नहीं । सन्त ने गम्भीर होकर कहा - "महासागर की तूफानी तरल तरंगों पर नाचने वाली नौका के समान जिनका जीवन चंचल है, उनके भाग्य में शान्ति और आनन्द कहाँ ? हर्ष और उल्लास कहाँ ? वत्स, यदि जीवन में शान्ति और आनन्द के मधुर क्षणों की कामना हो, तो पहले अपने जीवन की दिशा को बदलो, दशा बदलते विलम्ब नहीं लगेगा ! जीवन नौका को स्थिर करो। अपना एक ध्येय, एक लक्ष्य स्थिर करो । ( १२४ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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