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________________ १२२ अमर भारती विद्या मिली, शिक्षा मिली, ज्ञान मिला ? पर हुआ क्या ? विबाद करते रहे, शास्त्रार्थ करते रहे, लड़ते ही रहे, जीवन भर । अपना पांडित्य प्रदर्शन करते रहे। जनता का अज्ञान दूर नहीं कर पाये ? जनता को सन्मार्ग नहीं बता सके, धर्म गुरु भी बने, परन्तु पन्थों के नाम पर, पोथियों के नाम पर संघर्ष करते रहे। सत्य कहने का साहस नहीं है, हिम्मत नहीं है, तो क्या धर्म गुरु रहे ? अपने-अपने विचारों के खंटों से बंधे पड़े रहे, पंथ और मतों की बेड़ियों में बंधे रहे। सत्य को परखा नहीं, परखा भी तो जीवन में उतार नहीं सके। हजारों पोथियों का भार ढोते रहे, शास्त्रों के नाम पर, धर्म ग्रन्थों के नाम पर । पर सार क्या निकला? आचार्य के शब्दों में मुझे कहना होगा "विद्या विवादाय, धनं मदाय, शक्तिः परेषां परिपीडनाय" विद्या मिली, प्रकाश नहीं पा सके, केवल वाद ही करते रहे-ये ज्ञान । के गुलाम हैं, विद्या के भिखारी हैं। धन मिला, न स्वयं भोग सके और न दे सके-धन-मद और अर्थ अहंकार ही करते रहे-ये धन के गुलाम हैं । शक्ति और सत्ता मिली, न्याय और नीति के लिए पर उत्पीडन ही करते रहे-ये शक्ति और सत्ता के गुलाम हैं। राजा बने, पर अन्त में भिखारी ही रहे। मैं कह रहा था कि अपने जीवन के ये कंगले-भिखारी क्या विकास करेंगे ? क्या अपने को संभालेंगे ? जीवन एक विशाल राज्य है। यदि हमारा प्रभुत्व हमारे तन पर नहीं चलता, मन पर नहीं चलता, तो हम कैसे राजा? यदि हम तन और मन के गुलाम बने रहे, तो जीवन राज्य में उस भिखारी राजा से अधिक कीमत हमारी क्या होगी ? एक दार्शनिक से पूछा गया-"सफल जीवन की व्याख्या क्या है ?" उसने मुस्कान भर कर कहा-"तुम मनुष्य हो, मनन-शील हो, जरा मनन करो, व्याख्या मिल जाएगी ।" मनुष्य जब जन्म लेता है, तब रोता हुआ आता है । क्यों ? इसलिए कि वह विचार करता है-"हिमालय जैसे कर्तव्य के भार को मैं उठाता हुआ, किस प्रकार अपने जीवन को सफल कर सकने में समर्थ बनूंगा ?" परन्तु परिवार वाले हसते हैं। इसलिए कि यह हमारे घर के अंधेरे को दूर करेगा । वंश, कुल और जाति का नाम रोशन करेगा। हमारे जीवन का आधार और सहारा रहेगा। हमें रक्षण और सहयोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001352
Book TitleAmarbharti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Epistemology, L000, & L005
File Size10 MB
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